Bhoot Ki Kahani

    Social Items

Bhoot Ki Kahani

premium blogger template from HIVEcorp

Basanti Bani Bhoot ki Kahani

Basanti-Bani-Bhoot-ki-Kahani

Basanti Bani Bhoot ki Kahani. This story is about my grandmother. How she became a ghost And you will read this story in Hindi. This is a very scary and amazing ghost story. I hope this. A Hindi ghost story. Which is the story of the ghost of Basanti? You will like it

Basanti Bani Bhoot ki Kahani

मेरे दादा जी। बड़े शौक से वह तस्वीर खरीद के लाए थे। दादाजी की उम्र अब लगभग 80 साल की हो गई थी। उनकी पत्नी बसंती यह दुनिया छोड़कर चली गई थी। अकेलापन महसूस करने लगे थे दादा जी। वह तस्वीर किसी आर्ट गैलरी से खरीद के लाए थे। उनका कहना था कि वह तस्वीर उन्हें बसंती की याद दिला रही थी।

उन्होंने उस तस्वीर को अपने बेडरूम में लगाया। अपने पलंग पर सोते-सोते घंटों वह उस तस्वीर को ही देखा करते थे। दादा जी का बेटा दिलीप और उनकी बहू रम्भा। दोनों ही उनकी इस आदत से कुछ परेशान से हो गए थे। कभी-कभी तो उनके रूम में से अकेले ही कुछ बडबडाने की आवाज आती रहती थी। रम्भा ने दिलीप से कहा कि बाबू जी को ये क्या हो गया है। दादा जी उस तस्वीर से बातें भी करने लगे थे। 

अब सब बड़े ही चिंतित हो गए थे। उसने वह तस्वीर दादाजी के बेडरूम से निकालनी चाहिए। इस हरकत से दादा जी नाराज हो गए। और उन्होंने खाना पीना ही छोड़ दिया। मजबूरन दिलीप को वह तस्वीर फिर से दादाजी के कमरे में लगवानी पड़ी। लेकिन अब दादाजी ने बहू और बेटा दोनों से ही बात करना भी छोड़ दिया था। इतना ही नहीं वह खाना भी अपने कमरे में ही खाने लगे थे। दिन-ब-दिन उनकी तबीयत खराब ही होती जा रही थी।

Basanti Bani Bhoot ki Kahani

किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन्हें हुआ क्या है। 1 दिन रम्भा उनके कमरे में उन्हें खाना देने आई। दादाजी बस एकटक उस तस्वीर को ही घूर रहे थे। और उनके होंठ कुछ फूट-फूटा रहे थे। बसंती क्या तुम मुझसे नाराज हो मिलने क्यों नहीं आई। दादाजी की यह बात सुनकर रम्भा बहुत घबरा सी गई। तस्वीर की तरफ देखा दो पल केलिए ये उसे भी लगा कि जैसे उस तस्वीर की आंखें उसे ही घूर रही है। रोशनी बहुत ही कम थी।

और एक अजीब सी बदबू पूरे कमरे में फैल चुकी थी। न जाने दादाजी उस कमरे में कैसे रहते थे। रम्भा ने खाना रखा और वह उस कमरे में से बाहर निकल आई। बसंती मुझे भी अपने साथ ले चलो ऐसा दादा जी बोले जा रहे थे। चांद की हल्की सी रोशनी उस खिड़की में से आकर उस तस्वीर पर गिर रही थी। धीरे-धीरे उस तस्वीर का नूर पलटने लगा। मनो तस्वीर जिंदा हो रही हो। 

शायद तुम आ गई। तुम आ गई बसंती। दादाजी पुट पुटा रहे थे। एक सुंदर सी लड़की उस तस्वीर से निकल सिरहाने आकर बैठ गई। लड़की बोली मुझे कभी छोड़कर मत जाना। इतना बोल ही रहे थे दादजी। कि चांद की रोशनी उस लड़की के चेहरे पर आ पड़ी। उसकी तरफ देखा तुम-तुम बसंती नहीं हो। तुम मेरी बसंती नहीं हो। लड़की का चेहरा बड़ी ही भयानक तरीके से सड़ चुका था। 

वह दादाजी की तरफ देख कर मुस्कुराई। और बोली।।। अगली पूर्णिमा के दिन हम एक हो जाएंगे। आपको मुझसे कभी भी अलग नहीं रहना पड़ेगा। दादाजी जोर से चिल्लाना चाहते थे। लेकिन मानो जैसे उनकी आवाज ही चली गई थी। उस लड़की ने धीरे से उनका माथा चूमा। और मुस्कुराती हुई फिर से उस तस्वीर में गायब हो गई। दूसरे दिन जब रम्भा दादा जी के कमरे में आई। तो वह दादाजी का चेहरा देख जोरो से चिल्लाई।

Jab Dilip Kamare Men Aaya

उसका पति कमरे में आया उसने देखा कि दादाजी का चेहरा पूरा सूख चुका था। मनो जैसे किसी ने उनका खून ही चूस लिया हो। सांसे तो चल रही थी। लेकिन उनकी आंखें सफेद पड़ गई थी। और वह उस तस्वीर को ही ताकते जा रहे थे। लेकिन अब उनकी आंखों में वह प्यार वह जज्बात नहीं था। जो पहले दिखाई देता था। 

अब उस प्यार और जज्बात की जगह किसी खास ने ले ली थी। उनके होंठ सूख चुके थे। वो कुछ पुट पुटा रहे थे। लेकिन किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। दादा जी क्या आप कुछ कहना चाहते हैं। दिलीप उनकी बात समझने की कोशिश कर रहा था। नीमा, पूर्णिमा, माताजी, बोलने की कोशिश कर रहे थे। कुछ भी कुछ भी दादाजी के मुंह में से निकल ही नहीं रहे थे। हाथ से उस तस्वीर की तरफ इशारा करने लगे। 

दिलीप को उनकी बात समझ ही नहीं आ रही थी। दादा जी हम वह तस्वीर वहां से नहीं निकालेंगे। आप चिंता मत कीजिए। दादा जी का हाथ बिस्तर पर गिर पड़ा। डॉक्टर नेदादाजी की पूरी जांच पड़ताल की। मैं भी उनकी बीमारी का पता नहीं चल पा रहा था। दादाजी उस तस्वीर को वहां से हटाना चाहते थे। लेकिन किसी को भी उनकी बात समझ नहीं आ रही थी। पूर्णिमा का वो दिन आ ही गया। दादा जी एकटक उस तस्वीर की तरफ देख रहे थे। जैसे ही चांद की रोशनी उस तस्वीर पर पड़ी। 

वो लड़की उस तस्वीर में से बाहर आने लगी। दादाजी दिलीप और रम्भा को पुकारने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उनके मुंह में से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी। लड़की उनके पास आई। मैं आपको लेने आई हूं। अब हमें कभी भी अलग नहीं रहना पड़ेगा। तुम बसंती नहीं हो। मैं तुम्हारे साथ नहीं आना चाहता। दादाजी पुटपुटाने लगे। तुमने ठीक पहचाना मैं बसंती नहीं कमला हूँ। 

More Story...👉 Bhoot Ki Kahani

एक चित्रकार मेरी तस्वीर बनाना चाहता था। फिर बनाते बनाते वह मुझसे प्यार करने लगा। शादी करने की इच्छा दर्शाए। लेकिन जब मैंने इनकार किया तो गुस्से में आकर मेरी जानलेली और मेरे ही रक्तों से उसने तस्वीर के रंग भरे। और बाद में खुद भी आत्महत्या कर ली। तभी से मैं इस तस्वीर में रह रही हूँ। वह दिन पूर्णिमा का ही दिन था। पूर्णिमा के दिन मुझे रक्त की प्यास लगती है। अब आओ मेरी प्यास बुझाओ। कहकर उस डायन ने अपना मुंह खोला। दादा जी के मुंह से एक हल्की सी आवाज निकली और फिर सब कुछ शांत हो गया।

दिलीप और रम्भा को कभी भी इस बात का पता नहीं चल पाया। आखिरकार दादाजी की मौत की असली वजह क्या थी। उन्होंने उस कमरे का सारा सामान कबाड़ खाने में भेज दिया। जिसमें वह तस्वीर भी थी। पता नहीं अब वह तस्वीर कहां पर है। और किस घर की दीवार पर टंगी हुई है। कहीं वह तस्वीर आपके घर में तो नहीं है ना।

Basanti Bani Bhoot ki Kahani

Strange Kamare ki Bhoot ki Kahani

Strange-Kamare-ki-Bhoot-ki-Kahani

Strange Kamare ki Bhoot ki Kahani. This ghost story is in Hindi. Friends, when I went to my maternal grandfather's house. So there I saw something like this. Some such incident happened with me which I am sharing with you in this post today. And I hope you enjoy this story in its entirety.

Kamare ki Bhoot ki Kahani

जब मैं 15 साल का था। तब मैं छुट्टियों में गांव में अपने नाना के पास रहने गया था। और उनके गांव में एक बहुत बड़ी हवेली थी। हवेली में बहुत सारे कमरे थे। हवेली काफी पुरानी थी। सभी बच्चे वहां पर लुक्का छुपी खेला करते थे। उस मकान में ऐसी बहुत सी जगह है। और कमरे हैं तो जीतने के लिए बहुत ही अच्छी जगह थी। मकान मुझे अच्छा लगता था।

रात को मुझे उस मकान में अच्छे से नींद नहीं आती थी। रात भर मैं करवटें बदलता रहता था। मकान में से बड़ी अजीब-अजीब आवाजें सुनाई देती थी। वह मकान सन्नाटा में बहुत ही डरावनी लगती थी। हमेशा सोचता रहता की आखिरी आवाज आती कहां से है।

अपने नाना को इस बारे में पूछना चाहा लेकिन नाना नहीं बोले। मेरी बात को हंसी में टाल देते पता नहीं मुझे ऐसा क्यों लग रहा था। कि कुछ तो बात है। जो नाना मुझसे छुपा रहे हैं। फिर मैंने उस बात की छानबीन करने की ठान ली। मकान की तीसरी मंज़िल पर एक कमरा था वह कमरा बंद रहता था।

उस कमरे में मैंने किसी को भी आते जाते हुए नहीं देखा था, शिवाय मेरे नाना के। मुझे पूरा यकीन था कि हो ना हो आवाज उसी कमरे में से आती है। मेरा कौतूहल अब अपनी चरम सीमा तक पहुंच चुका था। जब मैं अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रहा था तो एक दर्दनाक आवाज मेरे कानों में सुनाई दी।

मकान में जैसे एकदम भगदड़ सी मच गई थी। अपने कमरे में से बाहर आया कमरे के बाहर बहुत ही घना अंधेरा था। फिर मैंने नाना को हाथ में लालटेन ले तीसरी मंजिल के उसी कमरे की तरफ बढ़ते हुए देखा। धीमी चाल में मैं भी नाना की पीछे-पीछे चलने लगा। कमरे के पास पहुंचते ही नाना ने अपनी जेब में से चाबी का गुच्छा निकाला कमरे का ताला खोलने लगे।

डरावनी आवाज आने लगी

अंदर से आवाज बढ़ती जा रही थी ताला खोलकर नाना कमरे के अंदर चले गए। नाना हमेशा अपने पीछे दरवाजा बंद किया करते थे। आज यह बात भूल गए दबे पांव मैं उस दरवाजे तक पहुंचा। दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था मैं उसमें से अंदर झांक कर देखने लगा।

लालटेन की रोशनी में मैंने अंदर जो भी नजारा देखा वह बहुत ही डरावना था। कमरे में किसी बुढ़िया औरत को जंजीरों में जकड़ कर रखा हुआ था। वह चीखें और भयानक आवाजें उसी औरत के थे। उस औरत के बाल सफेद हो चुके थे। और पूरा चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ था।

लेकिन उस औरत की सबसे डरावनी बात अगर कुछ थी। तो वः थी उसकी आँखें बाप रे बाप मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं देखी थी। उसकी आँखे बड़ी-बड़ी और पूरी तरह से लाल थी। अपने आप गोल-गोल घूम रहे थे। कभी उसकी आँखें एक ही जगह पर सहन कर देख ने लगती।

अपने हाथ पैर मारने लगती। कभी शांत हो जाती और उनकी होठों पर एक मुस्कान आ जाती। मुस्कुराहट खुशी के नहीं थे मुस्कुराहट में छलावा भरा हुआ था। वः सब देख मेरे हाथ पांव ही ठंडे पढ़ने लगे। फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने उम्मीद ही नहीं की थी। वो घूमने लगी उसकी मुस्कुराहट उनके होठों पर आई जैसे मनो वह मुझसे ही बात कर रही थी। नाना ने झटके से दरवाज़े को खोला और मैं पकड़ा गया।

नाना को मैने इतना गुस्से में पहले कभी ना देखा था। बहुत हुआ जिस बात को दफ़न रखना चाहता था। आखिरकार मैंने वह देख ली थी लेकिन सच मानिए तो। अब मैं अपने आपको ही कोस रहा था। मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था। मेरा गला डर के मारे सूख चुका था। नाना ने लालटेन मेरे हाथों में दी। नाना उस बूढ़ी औरत के नज़दीक गया और उसने उसे एक बड़ा सा इंजेक्शन लगाया।

मेरी तो खटिया खड़ी थी

अभी भी मुझे ही देख रही थी मैं झटपट उस कमरे से बाहर आया। नाना ने मुझे बताया कि उन्हें एक अजीब सी बीमारी थी। अपने इर्द-गिर्द बहुत सी परछाइयाँ देखा करती थी। उनका कहना था कि वो परछाइयां उन्हें डराती है। उन्हें मारना चाहती है डॉक्टर का मानना था। कि उन्हें स्कीजोफ्रेनिया है। अस्पताल में उन पर बहुत इलाज किया गया कोई फायदा नहीं हुआ।

कभी-कभी वह बहुत ज्यादा ही स्टिक हुआ करती थी। इसीलिए उन्हें जंजीरों में जकड़ कर रखा था। पूरी कहानी मुझे बताए लेकिन फिर भी मेरा डर कम ना हुआ। मैं अपने घर वापस जाना चाहता था। नाना ने मुझे यकीन दिलाया कि वह सुबह ही मुझे शहर छोड़ आएगा। मैं उस घर में वापस कभी भी नहीं आना चाहता। कुछ दिनों बाद तक भी में उस बूढ़ी औरत को सपने में देखता था

और ठीक से सो नहीं पाता। मुझे उनकी बहुत याद आ रही थी। 2:00 बजे होंगे अचानक मेरे कानों में किसी की फुसफुसा ने की आवाज़ आने लगी मेरा पूरा बिस्तर पसीने से भींग चुका था। बेडरूम के दरवाज़े की तरफ देखा दरवाज़ा अपने आप खुल रहा था। उसमें से एक भयानक की परछाईं मेरी तरफ बढ़ रही थी। वहां पर और कोई भी नहीं था परछाईं मुझे अपने पास बुला रही थी। और एकाएक मेरी नींद खुली तो मैंने देखा की ये तो सपना था।

Strange Kamare ki Bhoot ki Kahani

Bhoot ki Kahani

Bhoot-ki-kahani
Bhoot-ki-kahani
Bhoot ki Kahani. आज से 10 साल पहले जब रमेश के बाबूजी बहुत बीमार रहा करते थे। तब उन्होंने अपनी बहू रेशमा को बुलाया।

रेशमा बेटा…..

ये नहीं सुधरेगा।

जी बाबू जी।

आओ बहु तुम्हें बहुत जरूरी बात बतानी है। 

हाँ हाँ बोलिए।

इस नालायक को सुधारते-सुधारते मैं बूढ़ा हो गया। लेकिन यह मुझसे सुधर नहीं पाया।मुझे तो लगता है। कि उसे किसी आलसी भूत ने अपने वश में कर लिया है। बेटी उस आलसी भूत को भगाने की ज़िम्मेदारी मैं तुम पर सोंपता हूं। और बस यही भूपेंद्र की आखिरी इच्छा थी। 

तब से रेशमा अपने पति रमेश को सुधारने में जुट गई। उसने सोचा कि अगर वह अपने पति की खेतों में मदद करें। 
तो शायद रमेश को भी मेहनत करने की इच्छा हो।  तो वह अपने पति के साथ खेतों में मजदूरी करने निकल पड़ी। 

Khani Bhoot Ki

वह दोनों साथ में शुरू करते लेकिन जल्द ही रमेश में आलस भर जाता। और वह पेड़ के नीचे सो जाया करता था। और बेचारी रेशमा अकेली मेहनत करती रहती। रेशमा सोचने लगी कुछ और सोचना होगा। 

तो गांव में घोषणा हुई। सरकार मुफ्त में बीज देने वाली है। कल सुबह 9:00 बजे सरकारी ठेके में आना मुफ्त में बीज ले जाना। रेशमा यह सुनकर अपने पति के पास गई। क्योंकि सरकार मुफ्त में बीज दे रही है। मुफ्त का नाम सुनकर रमेश की आंखों में अलग सी चमक थी। 

रमेश सरकारी ठेके में लाइन में सबसे आगे खड़ा था। और बीज लेके घर पहुंचा। रेशमा..2
हां। 

Bhoot ki Kahani

यह देखो बीज वह भी मुफ्त में। रेशमा रमेश की बातें अच्छे से सुनने लगी। रेशमा के मन में एक युक्ति सूजी। अगले दिन 

रेशमा रमेश के पास आई। और बोली सरकार ने फिर घोषणा की है। 

रमेश बोला फिर बीज देंगे।

नहीं बैल देंगे।
 
इससे तो मेरा काम आधा हो जाएगा बोलो कहां जाना है। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। 

सरकार की घोषणा है। कि आने वाले 3 महीनों में जो किसान 1 क्विंटल अनाज उपजायेगा जाएगा। 

उसे वह बैल मुफ्त में देंगे बोला है। की उसमें 5 क्विंटल अनाज उपजेगा। 

जिससे आगे मेहनत करने की जरूरत नहीं बस फिर क्या था। खेत जाकर मेहनत करने लगा। वह दिनभर हल चलाता खेतों को पानी डालता। महीने बाद उसके खेतों में धान के अंकुर फूटे फिर धीरे-धीरे खेत लह लहाने लगा। उसने मेहनत जारी रखी 3 महीने बाद रमेश ने कटाई शुरू की।

उसके खेतों में धान का एक छोटा सा पहाड़ था। 

1 क्विंटल से तो ज्यादा ही होगा व्यापारी में रमेश को ₹100000 नकद दे दिए। रमेश की पत्नी देख कर बहुत खुश हुई वह सीधा मंडी गई। और उसने दो बैल खरीद लिए बैल लेकर वह घर आई। मुफ्त में नहीं आप ने क रेशमा है। 

मैंने आपसे झूठ कहा था। लेकिन मेरी छूट की वजह से आपने मेहनत की, और 3 कुंटल अनाज हुवे। उन 3 क्विंटल से ₹100000 आए उनमें से 10000 में मैंने यह दो बैल खरीदें। रमेश को अपनी आंखों पर यकीन नहीं था। इतने सारे पैसे नहीं देखे थे कभी। 

अगले दिन से रमेश अपने बैलों के साथ खेती करने लगा। क्योंकि उसे समझ आ गया था। कि उसकी मेहनत से वह जो चाहे वो पा सकता है। 

देखा। आज मैंने उस आलसी भूत को भगाकर आपकी आखरी इच्छा पूरी कर दी। 

Bhoot ki Kahani

Subscribe Our Newsletter